رسالة في التسامح

رسالة في التسامح पीडीएफ

लेखक:

वॉल्टेयर

विचारों:

848

भाषा:

अरबी

रेटिंग:

0

पृष्ठों की संख्या:

195

खंड:

दर्शन

फ़ाइल का आकार:

4433392 MB

किताब की गुणवत्ता :

अच्छा

एक किताब डाउनलोड करें:

55

अधिसूचना

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फ़्राँस्वा-मैरी अरौएट (21 नवंबर 1694 - 30 मई 1778) एक फ्रांसीसी प्रबुद्धता लेखक, इतिहासकार और दार्शनिक थे। उनके नाम से जाना जाता है डी प्लम वोल्टेयर, वह अपनी बुद्धि के लिए प्रसिद्ध थे, और ईसाई धर्म की उनकी आलोचना-विशेष रूप से रोमन कैथोलिक चर्च-और दासता के लिए प्रसिद्ध थे। वोल्टेयर भाषण की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और चर्च और राज्य को अलग करने के पैरोकार थे।

वोल्टेयर एक बहुमुखी और विपुल लेखक थे, जिन्होंने नाटकों, कविताओं, उपन्यासों, निबंधों, इतिहासों और वैज्ञानिक प्रदर्शनों सहित लगभग हर साहित्यिक रूप में काम किया। उन्होंने 20,000 से अधिक पत्र और 2,000 किताबें और पर्चे लिखे। वोल्टेयर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध और व्यावसायिक रूप से सफल होने वाले पहले लेखकों में से एक थे। वह नागरिक स्वतंत्रता के मुखर पैरोकार थे और कैथोलिक फ्रांसीसी राजशाही के सख्त सेंसरशिप कानूनों से लगातार जोखिम में थे। उनके विवाद ने असहिष्णुता, धार्मिक हठधर्मिता और अपने समय की फ्रांसीसी संस्थाओं पर पूरी तरह से व्यंग्य किया। उनका सबसे प्रसिद्ध काम और मैग्नम ओपस, कैंडाइड, एक उपन्यास है जो अपने समय की कई घटनाओं, विचारकों और दर्शन पर टिप्पणी, आलोचना और उपहास करता है।

पुस्तक का विवरण

رسالة في التسامح पीडीएफ वॉल्टेयर

"قد أختلف معك في الرأي ولكني على استعداد لأن أموت دفاعاً عن رأيك". لم تكن عبارة فولتير هذه محض قولة عارضة في متون مؤلفاته التي ناهزت المئة كتاب، بين شعر ومسرحية ونثر وفلسفة، بل كانت خلاصة رسالته الفكرية والحياتية التي كانت بمثابة سيف رفعه طيلة حياته في وجه "الوحش الضاري"، الذي كان يقصد به التعصب الديني ومنطق محاكم التفتيش. هذا الوحش، الذي كان لا يزال يعمِل أنيابه في المجتمعات الأوروبية في القرنين السابع عشر والثامن عشر، هو نفسه الوحش الذي ينهش بعض مجتمعاتنا العربية والإسلامية إلى الآن ويتهددها بالتمزق والدمار. ولم تستطع أوروبا القضاء عليه إلا بإعلاء حرية الاعتقاد وبتكريس التسامح الديني وقبول الآخر المختلف دينياّ أو طائفياً. كان الفضل في هذا لعصر التنوير، الذي صنعه مثقفون روّاد، كان من أشهرهم وأجرئهم فولتير الذي لم يتوان يوما عن خوض أي معركة مهما كانت طاحنة دفاعا عن قيم التنوير وحقوق العقل والتسامح. وهذا الكتاب هو تتويج لواحدة من كبرى معاركه. ففولتير الذي ينتمي من حيث أصله العائلي إلى الأغلبية الكاثوليكية في فرنسا يقف في هذا الكتاب مدافعا شرسا وجريئا عن أسرة بروتستانتية اضطهِدت بسبب انتمائها المذهبي ودفعت ثمناً للتعصب أباً أعدم بالدولاب وابناً سُجن وأمّاً نُفيدت. هذا الكتاب الذي نشره فولتير عام 1763 يحتفظ براهنيته كاملة، ولاسيما بالنسبة إلى عالمنا العربي والإسلامي الذي لا يزال يصارع، واليوم أكثر من أي وقت سبق، للخروج من القرون الوسطى ومنطق القرون الوسطى.

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