محاولة لفهم الشفاعة

محاولة لفهم الشفاعة पीडीएफ

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741

भाषा:

अरबी

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0

विभाग:

खेत

पृष्ठों की संख्या:

116

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अच्छा

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(दिसंबर 27, 1921 - 31 अक्टूबर, 2009), मिस्र के दार्शनिक, चिकित्सक और लेखक। वह रईसों से मुस्तफा कमाल महमूद हुसैन अल महफौज है, और उसका वंश अली ज़ैन अल-अबिदीन के साथ समाप्त होता है। उनके पिता की मृत्यु 1939 में पक्षाघात के वर्षों के बाद हुई थी। उन्होंने चिकित्सा का अध्ययन किया और 1953 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, छाती की बीमारियों में विशेषज्ञता हासिल की, लेकिन 1960 में खुद को लेखन और शोध के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने 1961 में शादी की और शादी 1973 में तलाक में समाप्त हो गई। उनके दो बेटे थे , अमल और आदम। उन्होंने 1983 में श्रीमती ज़ैनब हमदी से पुनर्विवाह किया और यह विवाह भी 1987 में तलाक में समाप्त हो गया। उन्होंने कहानियों, नाटकों और यात्रा कहानियों के अलावा वैज्ञानिक, धार्मिक, दार्शनिक, सामाजिक और राजनीतिक पुस्तकों सहित 89 पुस्तकें लिखी हैं। उनकी शैली गुरुत्वाकर्षण, गहराई और सादगी की विशेषता है। डॉ मुस्तफा महमूद ने अपने प्रसिद्ध टीवी कार्यक्रम (विज्ञान और विश्वास) के 400 से अधिक एपिसोड प्रस्तुत किए, और 1979 में उन्होंने काहिरा में अपनी मस्जिद की स्थापना की जिसे "मुस्तफा महमूद मस्जिद" के रूप में जाना जाता है। इसमें सीमित आय वाले लोगों के इलाज से संबंधित तीन चिकित्सा केंद्र हैं, और मिस्र के कई लोग इसकी चिकित्सा प्रतिष्ठा के कारण इसके पास जाते हैं, और इसने सोलह डॉक्टरों से दया के काफिले का गठन किया है। केंद्र में चार खगोलीय वेधशालाएं शामिल हैं, और एक भूविज्ञान संग्रहालय, जिस पर विशेष प्रोफेसर आधारित हैं। संग्रहालय में ग्रेनाइट चट्टानों का एक समूह, विभिन्न आकृतियों में ममीकृत तितलियों और कुछ समुद्री जीव शामिल हैं। मस्जिद का सही नाम "महमूद" है और उन्होंने इसका नाम अपने पिता के नाम पर रखा।

पुस्तक का विवरण

محاولة لفهم الشفاعة पीडीएफ मुस्तफा महमूद

هي تلك المواضيع الشائكة التى يتطرق إليها دائما الكبير الرائع ، دكتور مصطفى محمود . حيث كان الإعتقاد سابقاً ( بالنسبة لي على الأقل ) أن كل من قال لا إله إلا الله ، فرسول الله شفيعه وسيدخل الجنه لشفاعته. إلى أن قرأت هذا الكتاب ، فتبين لى أمران هامان ، هما ملخص ذلك الكتاب : 1 أن شفاعة الآخرة رغم اختلاف أجلاء السلف على مفهومها ، إلا انها ليست بمفهوم شفاعة الدنيا. فليس هناك تعديل على أحكام الله عز وجل ، وليست هناك واسطة أو محسوبية ليغير الله من حكمه من أجل أحد ، وبطلب أحد ، أو بسبب شفاعة أحد. بل إن الشفاعة فى الأخرة كما حاول ان يفهمها مصطفى محمود ، وكما وردت فى رأي الإمام المراغى والإمام محمد عبده ، هي شفاعة مشروطة أو مقيدة بإذن الله لمن يرتضى عنهم. فالله يعلم السر وأخفى ، وهو الحق العادل الذي لا شريك له. أما الشفاعة فى الأخرة لها مفهومان أولهما بشارة يكرم بها الله ملائكته ، ليبشروا بها من نالته أو أصابته شفاعة الله. وثانيهما هي ان شفاعة الله إلا لمن ارتضى ، تكون هي التوبة التى يمنحها الله لعباده الطيبين ، فيتوب عليهم الله ويرضى عنهم . أي ان شفاعة الأخرى ، هي توبة الدنيا ، وشفاعة الملائكة هي تكريمهم ببشارة من نالته شفاعة الله بأن الله تقبل توبته . 2 فى هذه النقطة تحديدا ، كانت هي من أشغل تفكيرى أثناء قراءتى للكتاب أكثر من مفهوم الشفاعة ، ألا وهي السنة النبوية وكتب السيرة. لا أحد يستطيع أن ينكر السنة المحمدية ، والدكتور مصطفى محمود لا ينكرها ، بل يسير على هديها في انه يتخذ كتاب الله هو الحكم والفيصل فى كل ما اختلف فيه المسلمون ، وبأنه يستبعد السنة أول ما ورد إلينا من احاديث رسول الله لأن أولا : قد نهى رسول الله عن جمع أحاديثه وكتابتها ، وقام بحرق كل ما كتب من احاديثه ، وكذلك فعل أبو بكر وفعل عمر ، حتى لا يتأله الرسول أو يصير فى الإسلام كهنوت. وثانيهما أن كثير من الأحاديث التى وردت إلينا طالتها الإسرائيليات ، وبعضها ما تقوّله المنافقين على رسول الله ، بغرض إفساد الأمة ، و دحض همتها . وكيف جمع الإمام البخارى فى صحيحه 600 ألف حديث لم ثق فى غير 4000 حديث فقط. وكيف لم يثق الإمام أبي حنيفة فى تلك الأربعة آلاف حديثا إلا فى 17 حديث فقط . ونحن الآن نسمع فى المساجد وفى برامج التلفزيون ما يشيب له الولدان من تقويل وإفتراء على رسول الله . وهو ما جعلنى أفكر ألا انحي السنة النبوية ، ولكن أن نلتجئ فى الحكم فى القضايا التى يختلف فيها المسلمون إلا كتاب الله وحده ، فهو كما قال عنه : إنا أنزلنا الذكر وإنا له لحافظون .. فهو المعصوم من الخاطئ ، العماد الأساسى لإسلامنا ، منه نفهم الدين وإليه نحتكم. وعسى الله ان يتب علينا ، ويتقبل منا توبتنا فتلك هي شفاعتنا عنده

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