21 Leçons pour le XXI ème siècle

21 Leçons pour le XXI ème siècle पीडीएफ

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फ्रेंच

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विभाग:

इतिहास

पृष्ठों की संख्या:

419

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1951298 MB

किताब की गुणवत्ता :

घटिया

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अधिसूचना

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प्रोफ़ेसर हरारी का जन्म इज़राइल के हाइफ़ा में 1976 में लेबनानी माता-पिता के यहाँ हुआ था। उन्होंने अपनी पीएच.डी. 2002 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से, और अब इतिहास विभाग, यरूशलेम के हिब्रू विश्वविद्यालय में एक व्याख्याता हैं।
उन्होंने विश्व इतिहास, मध्यकालीन इतिहास और सैन्य इतिहास में विशेषज्ञता हासिल की। उनका वर्तमान शोध मैक्रो-ऐतिहासिक प्रश्नों पर केंद्रित है: इतिहास और जीव विज्ञान के बीच क्या संबंध है? होमो सेपियन्स और अन्य जानवरों के बीच आवश्यक अंतर क्या है? क्या इतिहास में न्याय है? क्या इतिहास की कोई दिशा होती है? क्या इतिहास के सामने आने से लोग खुश हो गए?
प्रो. हरारी ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ ह्यूमनकाइंड शीर्षक से एमओओसी (मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स) भी पढ़ाते हैं।
प्रो. हरारी ने 2009 और 2012 में दो बार रचनात्मकता और मौलिकता के लिए पोलोन्स्की पुरस्कार जीता। 2011 में उन्होंने सैन्य इतिहास में उत्कृष्ट लेखों के लिए सोसाइटी फॉर मिलिट्री हिस्ट्री के मोनकाडो पुरस्कार जीता।

पुस्तक का विवरण

21 Leçons pour le XXI ème siècle पीडीएफ युवल नूह हरारी

Après Sapiens qui explorait le passé de notre humanité et Homo Deus la piste d'un avenir gouverné par l'intelligence artificielle, 21 leçons pour le XXIe siècle nous confronte aux grands défis contemporains.

Pourquoi la démocratie libérale est-elle en crise ? Sommes-nous à l'aube d'une nouvelle guerre mondiale ? Que faire devant l'épidémie de « fake news » ? Quelle civilisation domine le monde : l'Occident, la Chine ou l'Islam ? Que pouvons-nous faire face au terrorisme ? Que devons-nous enseigner à nos enfants ?

Avec l'intelligence, la perspicacité et la clarté qui ont fait le succès planétaire de ses deux précédents livres, Yuval Noah Harari décrypte le XXIe siècle sous tous ses aspects - politique, social, technologique, environnemental, religieux, existentiel... Un siècle de mutations dont nous sommes les acteurs et auquel, si nous le voulons réellement, nous pouvons encore redonner sens par notre engagement. Car si le futur de l'humanité se décide sans nous, nos enfants n'échapperont pas à ses conséquences.

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